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चंद्रयान-2 की चांद पर लैंडिंग असफल - फिर भी उमीद की किरण


चंद्रयान-2 / चांद की सतह से सिर्फ 2.1 किमी पहले लैंडर का पृथ्वी से संपर्क टूटाऑर्बिटर एक्टिव, 95% मिशन सफल






इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहाअगले 14 दिन लैंडर से संपर्क साधने की कोशिश करेंगे

लैंडिग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर होनी थीयहां इससे पहले किसी भी देश का यान नहीं पहुंच सका थावैज्ञानिक डेटा विश्लेषण कर रहे

रात 1:53 बजे लैंडिंग होनी थी, 69 सेकंड पहले तक सभी चीजें सामान्य थींसमय बीत जाने पर लैंडर की स्थिति पता नहीं चली

इसी साल अप्रैल में इजरायली मून मिशन का चंद्रमा की सतह से 10 किमी पहले संपर्क टूट गया थाउसका रोवर क्रैश हो गया था


बेंगलुरु. भारत अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने के करीब थालेकिन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का लैंडिंग से महज 69 सेकंड पहले पृथ्वी से संपर्क टूट गया। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम की शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात 1 बजकर 55 मिनट पर लैंडिंग होनी थीलेकिन इसका समय बदलकर 1 बजकर 53 मिनट कर दिया गया था। हालांकियह समय बीत जाने के बाद भी लैंडर विक्रम की स्थिति पता नहीं चल सकी। इसरो चेयरमैन डाॅकेसिवन ने बताया, ‘‘लैंडर विक्रम की लैंडिंग प्रक्रिया एकदम ठीक थी। जब यान चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह से 2.1 किमी दूर थातब उसका पृथ्वी से संपर्क टूट गया। हम ऑर्बिटर से मिल रहे डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं। हमने आखिरी चरण में सिर्फ लैंडर से संपर्क खोया है। अगले 14 दिन संपर्क साधने की कोशिश करेंगे।’’
इसरो के एक वैज्ञानिक ने कहा, "हम केवल 5% मिशन खराब हुआ हैयह लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान हैं। 95% मिशन सफल रहा हैक्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सफलतापूर्वक चांद के चक्कर लगा रहा है।अगर लैंडर विक्रम की लैंडिंग की पुष्टि हो जाती तो सुबह 5 बजकर 19 मिनट पर रोवर प्रज्ञान बाहर आता और यह सुबह 5:45 पहली तस्वीर क्लिक कर लेता।

अब तक 109 मून मिशन में से 61% ही सफल:नासा
अमेरिकी
 अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा है कि पिछले छह दशक में चांद पर भेजे गए महज 61 फीसदी मिशन ही सफल हो पाए हैं। 1958 से लेकर अब तक 109 मिशन चांद पर भेजे गएलेकिन इसमें सिर्फ 60 मिशन ही सफल हो पाए। रोवर की लैंडिंग में 46 मिशन को सफलता मिली और सैंपल भेजने की पूरी प्रक्रिया में सफलता सिर्फ 21 मिशन को मिली है। जबकि दो को आंशिक रूप से सफलता मिली थी। लूनर मिशन में पहली सफलता रूस को 4 जनवरी 1959 में मिली थी।

मोदी ने कहाआगे भी हमारी यात्रा जारी रहेगी
इससे पहले जब लैंडिंग का समय बीत गया तो इसरो मुख्यालय में वैज्ञानिकों के चेहरे पर तनाव नजर आया। इसरो मुख्यालय के कंट्रोल रूम में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विजिटर गैलरी से रवाना हो गए। इसके बाद वहां इसरो के पूर्व चेयरमैन मौजूदा चीफ डॉसिवन का हौसला बढ़ाते दिखे। डॉसिवन की तरफ से संपर्क टूटने की घोषणा होने के बाद प्रधानमंत्री दोबारा वैज्ञानिकों के बीच लौटे और उनका हौसला बढ़ाया। उन्होंने कहाजीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जो आपने कियावो छोटा नहीं है। आगे भी हमारी कोशिशें जारी रहेंगी। देश को अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है। मैं पूरी तरह वैज्ञानिकों के साथ हूं। आगे भी हमारी यात्रा जारी रहेगी। मैं आपके साथ हूं। हिम्मत के साथ चलें। आपके पुरुषार्थ से देश फिर से खुशी मनाने लग जाएगा। आपने जो कर दिखाया हैवह भी बहुत बड़ी उपलब्धि है।

आगे क्या?
जिस ऑर्बिटर से लैंडर अलग हुआ थावह अभी भी चंद्रमा की सतह से 119 किमी से 127 किमी की ऊंचाई पर घूम रहा है। 2,379 किलो वजनीऑर्बिटर केसाथ 8 पेलोड हैं और यह एक साल काम करेगा। यानी लैंडर और रोवर की स्थिति पता नहीं चलने पर भी मिशन जारी रहेगा। 8 पेलोड के अलग-अलग काम होंगे...
चांद की सतह का नक्शा तैयार करना। इससे चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी।

मैग्नीशियमएल्युमीनियमसिलिकॉनकैल्शियमटाइटेनियमआयरन और सोडियम की मौजूदगी का पता लगाना।

सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापना।

चांद की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें खींचना।

सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानना ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाना।

ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाना।

चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना।

अप्रैल में इजरायल के यान के साथ भी ऐसी ही दिक्कत आई थी
इजराइल की निजी कंपनी स्पेसएल ने इसी साल अपना मून मिशन भेजा था। लेकिन उसका यान बेरेशीट चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश में क्रैश हो गया था। यान के इंजन में तकनीकी समस्या आने के बाद उसका ब्रेकिंग सिस्टम फेल हो गया था। वह चंद्रमा की सतह से करीब 10 किलोमीटर दूर थातभी पृथ्वी से उसका संपर्क टूट गया और रोवर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के अब तक 38 प्रयास हुए, 52% ही सफलचांद को छूने की पहली कोशिश 1958 में अमेरिका और सोवियत संघ रूस ने की थी। अगस्त से दिसंबर 1968 के बीच दोनों देशों ने 4 पायनियर ऑर्बिटर (अमेरिकाऔर 3 लूना इंपैक्ट (सोवियन यूनियनभेजेलेकिन सभी असफल रहे। अब तक चंद्रमा पर दुनिया के सिर्फ 6 देशों या एजेंसियों ने सैटेलाइट यान भेजे हैं। कामयाबी सिर्फ 5 को मिली। अभी तक ऐसे 38 प्रयास किए गएजिनमें से 52% सफल रहे।

कई देशों के मुकाबले हमारा मिशन सस्ता
यानलागत 
चंद्रयान-
2978 करोड़ रुपए

बेरशीट (इजराइल)1400 करोड़ रुपए

चांग-4 (चीन)1200 करोड़


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